गंगोत्री विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव होगा या फिर अब यहां सीधे विधानसभा चुनाव के लिए ही वोट डाले जाएंगे?

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नियमानुसार किसी भी कारण से यदि विधानसभा सीट रिक्त होती है तो फिर छह माह के भीतर उपचुनाव कराया जाता है।इस लिहाज से गंगोत्री के लिए 21 अक्तूबर से पहले उपचुनाव होना है। इसमें से सवा महीने का समय निकल चुका है। अभी चुनाव कार्यक्रम घोषित नहीं हुआ है, अब पहाड़ में जुलाई- अगस्त मानसून काल के चलते सामान्य तौर पर निर्वाचन जैसा तामझाम वाला आयोजन संभव नहीं होता। इस लिहाज से गंगोत्री उपचुनाव सितंबर- अक्तूबर मध्य से पहले संभव नजर नहीं आ रहे हैं। इसके बाद मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल कुछ ही महीनों का शेष बचता है। तकनीकी तौर पर विधानसभा का कार्यकाल 18 मार्च 22 तक है

देहरादून ।कोरोना महामारी के चलते पूरी राजनीति में भी बड़ा बदलाव देखने में आ रहा है। लोगों के जुबान पर केवल कोरोना – कोरोना ही चल रहा है ऐसे में राजनीति भी सुन्न पड़ गई है। विधायक गोपाल रावत के निधन से रिक्त चल रही गंगोत्री विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव होगा या फिर अब यहां सीधे विधानसभा चुनाव के लिए ही वोट डाले जाएंगे? चूंकि उत्तराखंड विधानसभा का कार्यकाल अब कुछ माह का ही बाकी है, ऐसे में यह सवाल उठ खड़ा हुआ है। सामान्य तौर पर रिक्त सीट पर छह महीने के भीतर उपचुनाव कराया जाता है, लेकिन विधानसभा का कार्यकाल जब कुछ ही महीनों का शेष हो तो फिर उपचुनाव की उपयोगिता पर भी विचार किया जा सकता है। गंगोत्री विधायक गोपाल रावत का गत 22 अप्रैल को निधन हो गया था। नियमानुसार किसी भी कारण से यदि विधानसभा सीट रिक्त होती है तो फिर छह माह के भीतर उपचुनाव कराया जाता है।इस लिहाज से गंगोत्री के लिए 21 अक्तूबर से पहले उपचुनाव होना है। इसमें से सवा महीने का समय निकल चुका है। अभी चुनाव कार्यक्रम घोषित नहीं हुआ है, अब पहाड़ में जुलाई- अगस्त मानसून काल के चलते सामान्य तौर पर निर्वाचन जैसा तामझाम वाला आयोजन संभव नहीं होता। इस लिहाज से गंगोत्री उपचुनाव सितंबर- अक्तूबर मध्य से पहले संभव नजर नहीं आ रहे हैं। इसके बाद मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल कुछ ही महीनों का शेष बचता है। तकनीकी तौर पर विधानसभा का कार्यकाल 18 मार्च 22 तक है, लेकिन इससे पहले जनवरी में राज्य में विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू हो जाती है।उपयोगिता पर भी विचार
जानकारों के मुताबिक, संवैधानिक बाध्यता तो छह महीने के भीतर निर्वाचन कराने की है। लेकिन चूंकि अब राज्य विधानसभा का कार्यकाल चंद महीनों का ही बचता है, इसलिए भारत निर्वाचन आयोग उपचुनाव की उपयोगिता पर भी विचार कर सकता है। कोई भी चुनाव आयोग के साथ ही प्रत्याशियों के लिए भी खासा खर्चीला आयोजन है, ऐसे हालात में उपचुनाव टल भी सकते हैं।
सीएम लड़े तो होगा उपचुनाव
इन परिस्थितियों के विपरीत यदि सीएम तीरथ सिंह रावत गंगोत्री या कहीं और से भी उपचुनाव लड़ते हैं तो फिर गंगोत्री में उपचुनाव होने तय हैं। सीएम तीरथ सिंह रावत को दस सितंबर से पहले विधानसभा की सदस्यता लेनी है। यदि वो गंगोत्री सीट से चुनाव लड़ते हैं तो यहां सितंबर प्रथम सप्ताह तक उपचुनाव हो सकता है। यदि सीएम कहीं और से भी चुनाव लड़ते हैं तो फिर गंगोत्री का उपचुनाव सीएम के उपचुनाव के साथ ही सम्पन्न होगा।

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