विश्व अस्थमा दिवस: मेडिकल कालेज हल्द्वानी कें टी0बी0 एवं श्वास रोग विभाग द्वारा कार्यशाला का आयोजन

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लक्षण व बचाव की जानकारी – अस्थमा एक तरह की आनुवांशिक बीमारी है जिसमें सांस की नलियां अति सवेंदनशील हो जाती है और विभिन्न प्रकार के कारकों जो की सामान्य जीवन व वातावरण में उपलब्ध हैं के संपर्क में आने से सांस की नलियां सूज जाती हैं और सांस लेने में अवरोध उत्पन्न करती है, इसमें व्यक्ति को घरघराहट, खांसी व सांस लेने में तकलीफ का अनुभव होता है।
अस्थमा रोग की शुरूआत बचपन में ही हो जाती है, एक तिहाई लोगों में इसकी शुरूआत देर से होती है, इसलिए बच्चों में जल्दी ही छींक आना, बार बार खंासी आना, सांस लेते समय सीटी की आवाज आना, छाती में जकड़न तथा भारीपन, सांस फूलना आदि । अस्थमा से पीड़ित व्यक्ति को आमतौर पर सुबह जल्दी या रात में अनुभव होता है। अस्थमा के दौरे के दौरान, वायुमार्ग के आसपास की मांसपेशियां कस जाती हैं जिससे व्यास कम हो जाता है और हवा का प्रवाह कम हो जाता है। धूल (घर या बाहर की) या पेपर की डस्ट, रसोई का धुआं नमी, सीलन, मौसम परिवर्तन, सर्दी-ंजुकाम, धूम्रपान, फास्टफूड, मानसिक चिंता, व्यायाम, पालतू जानवर एवं पेड पौधों एवं फूलों के परागकण तथा वायरस एवं बैक्टीरिया के संक्रमण आदि अस्थमा के मुख्य कारक हैं डां0 राजीव गर्ग

हल्द्वानी । विश्व अस्थमा दिवस के मौके पर राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी के टी0बी0 एवं श्वास रोग विभाग द्वारा मेडिकल कॉलेज परिसर के लेक्चर थियेटर में एक कार्यशाला आयोजित की गयी, जिसमें मुख्य वक्ता डॉ0 राजीव गर्ग, (प्रोफेसर, रेस्पीरेट्री मेडिसिन विभाग), किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ, द्वारा विश्व अस्थमा दिवस की थीम ‘‘अस्थमा केयर फॉर ऑल’’ की जांच एवं उपचार विषय पर विस्तृत जानकारी प्रदान की गयी।
आलोक उप्रेती जनसंपर्क अधिकारी ,राजकीय मेडिकल कॉलेज, हल्द्वानी के द्वारा जारी प्रेस नोट के अनुसार डॉ0 राजीव गर्ग ने ‘‘अस्थमा केयर फॉर ऑल’’ के बारे में बताया कि ंविश्व अस्थमा दिवस प्रति वर्ष मई माह के पहले मंगलवार को मनाया जाता है,। जिसका मुख्य लक्ष्य अस्थमा बीमारी की जानकारी लोगों के बीच जागरूकता फैलाना है। डा0 गर्ग ने यह भी बताया कि सन् 1998 में बार्सिलोना, स्पेन में पहली विश्व अस्थमा बैठक में 35 से अधिक देशों द्वारा पहला विश्व अस्थमा दिवस मनाया गया था।
अस्थमा एक तरह की आनुवांशिक बीमारी है जिसमें सांस की नलियां अति सवेंदनशील हो जाती है और विभिन्न प्रकार के कारकों जो की सामान्य जीवन व वातावरण में उपलब्ध हैं के संपर्क में आने से सांस की नलियां सूज जाती हैं और सांस लेने में अवरोध उत्पन्न करती है, इसमें व्यक्ति को घरघराहट, खांसी व सांस लेने में तकलीफ का अनुभव होता है। अस्थमा से पीड़ित व्यक्ति को आमतौर पर सुबह जल्दी या रात में अनुभव होता है। अस्थमा के दौरे के दौरान, वायुमार्ग के आसपास की मांसपेशियां कस जाती हैं जिससे व्यास कम हो जाता है और हवा का प्रवाह कम हो जाता है। धूल (घर या बाहर की) या पेपर की डस्ट, रसोई का धुआं नमी, सीलन, मौसम परिवर्तन, सर्दी-ंजुकाम, धूम्रपान, फास्टफूड, मानसिक चिंता, व्यायाम, पालतू जानवर एवं पेड पौधों एवं फूलों के परागकण तथा वायरस एवं बैक्टीरिया के संक्रमण आदि अस्थमा के मुख्य कारक हैं।
डा0 राजीव गर्ग ने बताया कि ग्लोबल बर्डन ऑफ अस्थमा रिपोर्ट के अनुसार विश्व में लगभग 30 करोड़ लोग दमा से पीड़ित हैं, भारत में यह संख्या 03 करोड़ से अधिक है व विश्व में वर्ष में 2.5-ं3 लाख लोगों की मौत हो जाती है। मुख्यतः अस्थमा रोग की शुरूआत बचपन में ही हो जाती है, एक तिहाई लोगों में इसकी शुरूआत देर से होती है, इसलिए बच्चों में जल्दी ही छींक आना, बार बार खंासी आना, सांस लेते समय सीटी की आवाज आना, छाती में जकड़न तथा भारीपन, सांस फूलना आदि जैसे लक्षण आने लगते हैं। डा0 गर्ग ने बताया कि ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा की स्थापना 30 साल पहले 1993 में की गयी थी, इसका उद्देश्य अस्थमा के बारे में जागरूकता बढ़ाना और दुनिया भर में बेहतर अस्थमा देखभाल और प्रबंधन में वैज्ञानिक साक्ष्यों का अनुवाद करने के लिए एक तंत्र प्रदान करना है। 2001 में जीन ने अस्थमा के बोझ के बारे में जागरूकता बढ़ाने और अस्थमा के प्रबंधन और नियंत्रण के लिए प्रभावी तरीकों के बारे में परिवारों और चिकित्साकर्मियों को शिक्षित करने के लिए स्थानीय और राष्ट्रीय गतिविधि पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक वार्षिक विश्व अस्थमा दिवस की शुरूआत की नयी गाइडलाइन के अनुसार ऐसे व्यक्ति जिनके अंदर अस्थमा के एक भी लक्षण हों उनको अपने फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच (पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट) जरूर करानी चाहिए, इसको ने डायग्नोस बिफोर ट्रीट कहा है।
अस्थमा के दौरे से बचने के लिए अस्थमा ट्रिगर्स की पहचान करें, एलर्जी से दूर रहें, किसी भी प्रकार के धुएँ से बचें, जुकाम से बचाव करें, बताए गए अनुसार अस्थमा की दवाएं लें, अपनी अस्थमा कार्य योजना का पालन करें। अस्थमा के मरीजों को अन्य सांस के रोगों से बचाव के लिए एक बार न्यूमोकोकल व प्रतिवर्ष इन्फ्लुएंजा के वैक्सीन जरूर लगवाना चाहिए।
डा0 राजीव गर्ग ने बताया कि अस्थमा के मरीजों के बीच में कई प्रकार की भ्रांतिया हैं जिसमें कोविड-.19 को लेकर भी है और इसके लिए वो कोविड-.19 का टीका लगवाने से बचते हैं जबकि यह स्पष्ट है कि अस्थमा के मरीजों में भी कोरोना भी वैसे ही असर करता है जैसे सामान्य व्यक्ति में, इसलिए कोरोना का टीका सुरक्षित भी है और असरदार भी है। साथ में अस्थमा में लेने वाली दवाएं कोरोना बीमारी से बचाव भी करती हैं।
इस कार्यशाला में डॉ0 अरूण जोशी, प्राचार्य राजकीय मेडिकल कॉलेज, डॉ0 राम गोपाल नौटियाल, विभागाध्यक्ष टी0बी0 एवं श्वास रोग विभाग, डा0 के0सी0 पांडे, डा0 परमजीत सिंह, डॉ0 हरि शंकर पाण्डेय, डा0 पंकज वर्मा, डा0 रवि कुमार शर्मा, नागेन्द्र प्रसाद जोशी समेत रेजीडेण्ट चिकित्सक, पी0जी0 व एम0बी0बी0एस0 के छात्र-छात्रायें उपस्थित थे।

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